डॉ जसप्रीत कौर फ़लक
☆ कविता ☆ लफ़्ज़ सच्चे हैं शायरी – सच है ☆ डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक ☆
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तू अगर है तो ज़िन्दगी – सच है
यह मुहब्बत की रौशनी- सच है
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झूठे लगते हैं यह ज़माने मुझे
दिल जो कहता है बस वही – सच है
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तुम से मिल कर मैं ख़ुद को समझी हूँ
अब यह लगता है हर ख़ुशी- सच है
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इश्क़ कहते हैं सारे लोग जिसे
तेरी दुनिया का आख़िरी – सच है
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बाणी कहती हैं ‘बाबा नानक’ की
‘आदि’ सच है ‘जुगादि’ भी – सच है
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आप जो रोज़ मुझ से कहते हैं
ऐसा लगता है अब यही – सच है
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ढलते सायों का एतबार नहीं
बहते धारों की दोस्ती – सच है
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आप ने आज जो सुनाया है
क्या वो क़िस्सा भी वा’क़ई – सच है
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यह मिटाने से मिट नहीं सकता
इस ज़माने में आज भी – सच है
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आप करते नहीं यक़ीं , लेकिन
मेरे होंठो पे आज भी – सच है
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इस हक़ीक़त को मान जाओ ‘फ़लक’
लफ़्ज़ सच्चे हैं शायरी – सच है
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© डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक
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