प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ – वन के दोहे – ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆☆
वन जब तक, तब तक यहाँ, हवा मिलेगी ख़ूब।
वरना हम सब पीर में, जाएँगे नित डूब।।
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वन का रहना है हमें, सुख का नव संसार।
रहे सुखद परिवेश तब, जीवन का आधार।।
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वन हरियाली, चेतना, देता जो उल्लास।
मिलती हैं साँसें हमें, सतत् मिले नव आस।।
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मिलतीं औषधियाँ हमें, वन-उपजें भी ख़ूब।
जीवों का विचरण वहाँ, उगती कोमल दूब।।
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वन तो खुशियों को रचे, लाता मंगल गान।
करता वन जीना सदा, बेहद ही आसान।।
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वन में मंगल हो रहा, खुशियों का पैग़ाम।
वन ने ही जग को दिए, नवल-धवल आयाम।।
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वन से रौनक, पर्यटन, नैसर्गिक शुभगान।
फल, पत्ते हैं पेड़ सब, उपयोगी सामान।।
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वन से ही है प्रकृति नव, वन से ही वनराज।
धर्म रचे वन में गए, हर्षित हुआ समाज।।
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वन से ही लकड़ी मिले, पौराणिक इतिहास।
तपसी जीवन वन रचें, अधरों पर नव हास।।
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पर्यावरण सुधारना, वन का चोखा काम।
जीवन की गतिशीलता, है देवों का धाम।।
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© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
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