प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ शब्दों का मेला ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆
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शब्द-शब्द है चेतना, शब्द -शब्द झंकार।
मिले सृष्टि को जागरण, शब्द रचें आकार।।
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शब्द विश्व का रूप है, शब्द बने उजियार।
शब्द उच्च उर्जा लिए, मेटे हर अँधियार।।
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शब्द ब्रम्ह हैं, ईश हैं, शब्द सकल ब्रम्हांड।
शब्द रचें अध्याय नित, मानस के सब कांड।।
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शब्द तत्व हैं, सार हैं, शब्द सृजन अभिराम।
शब्द सतत गतिशील हैं, सचमुच हैं अविराम।।
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शब्द नाद, सुर, ताल हैं, शब्द प्रीति, अनुराग।
शब्द गान, पूजन-भजन, शब्द दाह हैं, आग।।
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शब्द नेह हैं, प्यार हैं, शब्द गहन अभिसार।
शब्द युगों तक गूँजते, बनकर के आसार।।
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शब्द भाव, अभिव्यक्ति हैं, शब्द नवल आयाम।
सरिता के आवेग हैं, शब्द देवता-धाम।।
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शब्द मनुजता, वंदना, शब्द गीत, नवगीत।
शब्द वाक्य के संग में, बन जाते मनमीत।।
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शब्द खगों के स्वर बनें, हर अधरों के राग
शब्दों में संवाद है, ठुमरी, कजरी, फाग।।
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शब्द धरा आकाश हैं, बहते हुए समीर।
शब्द दर्द दें, टीस हैं, जो हरते हैं पीर।।
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© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈