श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
(आज “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद साहित्य “ में प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय जी की होली पर्व पर एक होली के रंगों से सराबोर रचना “होली आई रे….”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 80 ☆ होली पर्व विशेष – होली आई रे…. ☆
(प्रस्तुति – होली आई रे, मतलब उत्साह तथा उमंगों का त्यौहार जो मानव जीवन में रंग भर देते हैं। छेड़-छाड़ एवं मस्ती का त्योहार, लोगों के दिल में उतर कर एक अमिट छाप छोड़ देने का त्योहार, खुशियों के सागर में उतर कर गोते लगाने का त्योहार।
इन्हीं सपतरंगी छटाओं तथा खट्टे मीठे अनुभवों का चित्रण है ये रचना जो बनारस की सबसे पुरानी हिन्दी साहित्यिक संस्था नागरी प्रचारिणी सभा की नागरी पत्रिका के नव० २०१७ के अंक में पूर्व प्रकाशित है जो आप लोगों के समीक्षार्थ प्रस्तुत है पढ़ें और अपने आशीर्वाद से अभिसिंचित करें। – सूबेदार पाण्डेय)
रंग बिरंगी होली आई,
हर कोई मतवाला है।
किसी का चेहरा नीला पीला,
किसी का चेहरा काला है।
हर छोरी बृषभानु किशोरी,
हर छोरा नंदलाला है।
चंचल नटखट अल्हड़ है सब,
आंखों में का प्याला है।
मृगशावक सी भरें कुलांचे,
ना कोई रोकने वाला है।
।। रंग-बिरंगी होली आई।।१।।
किसी की भींगे पाग पितांबर,
किसी की चूनर धानी।
किसी की भीगे लहंगा चोली,
सबकी एक कहानी।
धरो धरो पकड़ो पकड़ो,
हर तरफ मची आपाधापी।
हर कोई है गुत्थमगुत्था,
हरतरफ मची चांपा चांपी।
गुत्थमगुत्था छीना झपटी में,
मसकी अंगिया चोली।
फटी मिर्जयी, गिरा अंगरखा,
(पगड़ी वाल साफा)
घरवालों की मांग चली टोली।
छाई है इक अजब सी मसलती,
हर कोई दिलवाला है।
।। रंग-बिरंगी होली आई।।०२।।
तानें है कोई पिचकारी,
जैसे तीर कमान लिए है।
कोई लिए गुलाल खड़ा,
जैसे हाथों में तोप लिए है।
धोखे से कोई गोपी,
मोहन को पास बुलाती है।
गालों में रंग-गुलाल लगा,
गाल लाल कर जाती है।
ग्वालों की टोली बीच कोई,
गोपी जब फंस जाती है।
भर भर पिचकारी रंगों से,
टोलियां उसे नहलाती है।
।। रंग बिरंगी होली आई।।०३।।
कोई किसी बहाने से,
नवयौवन को छू जाता है।
कोई लेता पप्पी झप्पी,
दिल❤️ अपना कोई दे जाता है।
कोई तकरार मचाता है,
दिल किसी का कोई चुराता है।
हर तरफ शोर है गीतों का,
हर तरफ जोर है होली का।
खुशियों से सना हर लम्हा है,
हर कोई हिम्मत वाला है।
।। रंग-बिरंगी होली आई।।०४।।
होली का त्यौहार है भइया,
खुशियों से जश्न मनाने का।
जीवन में रंग भरने का,
सबके दिल में बस जाने का।
अपना प्यार लुटाने का,
सबके प्यार को पाने का।
भूल के सारे शिकवों गिलों को,
सबको गले लगानें का।
सबको दिल से अपनाने का,
और सबका बन जाने का।
।। रंग बिरंगी होली आई।।०५।।
© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈