श्री प्रहलाद नारायण माथुर
( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें सफर रिश्तों का तथा मृग तृष्णा काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता ‘कांटों भरी डाल’। )
Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>> मृग तृष्णा
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 40 ☆
☆ कांटों भरी डाल ☆
माना मैं कांटों भरी डाल हूँ ,
मगर यकीन करिये दिल से मैं गुलाब हूँ ||
बेशक कांटों भरी चुभन हूँ,
मगर सबके लिए खुशबू भरा अहसास हूँ ||
नहीं आती मुझे दुनियादारी,
गलती हो जाए कभी तो अपनी गलती तुरंत मानता हूँ ||
सबको खुश रखना मेरे बस की बात नहीं,
मगर सबको खुश रखने की कोशिश पूरी करता हूँ ||
मैं कोई मजबूत ड़ोर नहीं,
कच्चा धागा हूँ थोड़ा सा खींचने से ही टूट जाता हूँ ||
प्यार सबका पाने को आतुर हूँ,
धागा बन सबको माला में पिरोये रखने की तमन्ना रखता हूँ ||
माना मैं कांटों भरी डाल हूँ,
मगर यकीन करिये दिल से मैं गुलाब हूँ ||
© प्रह्लाद नारायण माथुर
8949706002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈