श्री प्रहलाद नारायण माथुर

(श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता ‘संवरते रिश्ते । ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 48 ☆

☆ संवरते रिश्ते

हर पल जीवन में मधुरस घोल दो,

जीवन तो क्या इससे रिश्तें भी सँवर जाते है ||

*

गुस्से का अंजाम मालूम है सबको,

गुस्से की तपिश से पल भर में रिश्तें बिखर जाते हैं ||

*

क्यों ना पी ले हम इन नफरत के कड़वे घुंटों को,

बाकी जो बच जाएगा वह अमृत ही रह जाएगा ||

*

पल भर को रुक जाओ रिश्ता टूटने से बच जायेगा,

विष भरा शब्द-बाण जुबाँ पर आने से पहले बुझ जाएगा ||

*

विषैले शब्द बाण में थोड़ी मिश्री घोल लो, 

चन्द शब्दों की मधुरता से रिश्ता बिखरने से बच जायेगा ||

*

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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