हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 50 ☆ लड़खड़ाते कदम ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

(श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे।आज प्रस्तुत है इस कड़ी  की अंतिम भावप्रवण कविता ‘लड़खड़ाते कदम। ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 50 ☆

☆ लड़खड़ाते कदम

 

थम भी जाते कदम,

अगर कोई मुझे पुकार लेता,

रुक भी जाते बढ़ते कदम,

अगर कोई आकर हाथ थाम लेता ||

 

बढ़ते गए कदम धीरे-धीरे,

सोचा कोई तो मुझे थाम लेगा,

डगमगा रहे थे कदम,

सोचा अब कोई तो आवाज देगा ||

 

गिर पड़ा लड़खड़ाते कदम से,

लगा उठा लेगा कोई मुझे आकर,

किसी ने पलट कर भी ना देखा,

खून से लथपथ कदम मजबूर हो खुद खड़े हो गए ||

 

लड़खड़ाते कदम चलने को मजबूर थे,

ना किसी ने रोका ना किसी ने आंसू बहाये,

ड़गमगाते कदमों को खुद रोकना चाहा,

कदम रुकने के बजाय मजबूर होकर आगे बढ़ते गए || 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

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≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈