श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 101 ☆

☆ मजदूर महिला ☆

(प्रस्तुत रचना मजदूर बाला हमारे श्रमिक समाज की बेबसी, दुख , पीड़ा की झलक दिखाती‌है। गरीबी‌ की सजा भुगतते श्रमिक समाज के ललनाओं‌ के बच्चो‌ की भूख  एवम् ‌कुपोषण से‌ जूझते परिवारों की दशाओं की भयानक सच्चाई से रूबरू कराती है ये रचना। इसके साथ ही  सड़कों पर विपरीत ‌परिस्थिति  में अंतिम  सांस तक  जूझने की‌ भारतीय नारी के हौसलों के सत्य घटना क्रम पर  आधारित इस रचना में आपको निराला जी की रचना की छाप स्पष्ट‌ नजर आयेगी।) 

 

जेठ मास के बीच दोपहरी, वह सड़कों पर गिट्टी फेंक रही थी।

अब‌ हाड़-तोड़ मेहनत करने में, अपना भविष्य वो देख रही थी।

 

अम्बर से आग बरसती थी, धरती का जलता सीना था।

उस  खुले  आसमां  के  नीचे, तन से चू रहा पसीना था ।

 

काली छतरी के नीचे उसने, अपना दुधमुंहा शिशु लिटाया था ।

भूखा प्यासा रोता बच्चा भी, उसकी राह रोक ना पाया था ।

 

करते करते घोर कठिन श्रम, थक कर निढाल वो लेट रही थी।

जलती धरती बनी‌ बिछौना उसकी, सिर पर छाते की छाया थी।

 

छाते की छाया में, दोनों पांवों को घुटनों से मोडे।

बना हाथ का तकिया, बच्चे का सिर सीने से जोड़ें ।

 

वो बेख्याली में लेट रही, अपने  ग़म  की  चादर  ओढ़े।

चादर फटी हुई थी उसकी, बेबसी बाहर झांक रही थी।

 

फटी चादर की‌ सुराख  से, उसकी गरीबी ताक रही थी।

छाती‌ से चिपका प्यारा शिशु, अपना भोजन ढूंढ़ रहा था,

मां की ममता ढ़ूढ़ रहा था,।।

 

पर हाय रे क़िस्मत! उस बच्चे के, मां की ममता बीरान थी।

दूध न था छाती में उसके, गरीबी से परेशान थी।

 

फटे  हुए  कपड़े  थे तन  पर, जर्जर तन था काया थी।

गढ्ढो में धंसी हुई दो आंखें, उनमें ममता की छाया थी।

 

फटे हाल  वस्त्रों  के  पीछे,  उसका तन नंगा झांक रहा था।

शोषण की पीड़ा बन कर के, उसका भविष्य ही ताक रहा था ।

 

हाथों में है फावड़ा सिर पे भरी टोकरी, भूखा बचपन गोद में।

ये उसकी पहचान री।

 

सारे ‌मिथक तोड़ कर, अपना वतन छोड़  कर।

अपने श्रम को बेचती, दुख के‌ लबादे ओढ़कर ।

 

शोषण की‌‌ पीडा़ बेबसी का दंश झेलती।

फिर भी हर हाल में दुखों से है खेलती।

 

अंबर बना ओढना‌, धरती का बिछौना है।

गोद चढा़ दुधमुहां, उसका खिलौना है

 

उसी से वो बातें करती, उसी से है खेलती।

अपनी सारी ममता, उसी पे है उड़ेलती।

 

शोषण कुपोषण का दंश, झेल रही पीढ़ियाँ ।

फांकाकशी  लाचारी से, खेल रही पीढ़ियाँ ।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments