श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 103 ☆
☆ चंद शेर ☆
सभी को देख कर ये फूल मुस्कुराया था,
जिगर के दर्द को उसने सदा छुपाया था।
मुझे देख कर उससे चुप रहा न गया,
अश्क आंखों से ढ़ले और कुछ कहा न गया।
मौन हो अपना दर्देदिल बयां कर दिया उसने।
बात इज्जत की थी,होंठों को सिल लिया उसने।
गागर के छलकने से बाढ़ कभी आती नहीं,
नदियां उफनती है तो बांधतोड़ देती है।
धैर्य और साहस से पलट कर जिसने वार किया,
तूफ़ानों का रूख वहीं मोड़ देते हैं।
ओंठ मुस्कुरा देते हैं, आंखें जार जार रोती है,
दर्द कितना गहरा है, बता देते हैं ये आंसू।
तमन्ना दिल में पलती है, दुआयें हाथ देते हैं।
तेरे कर्मों की गिनती को, बता देते हैं ये आंसू।
© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266