श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
(आज प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना – वो नटखट बचपन…। इस सन्दर्भ में हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी के हार्दिक आभारी हैं जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय देकर इस कविता को इतने सुन्दर तरीके से सम्पादित किया। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – वो नटखट बचपन… ☆
जब बेटा-बेटी बन,
घर आंगन में आया
मेरे घर खुशियों का
अंनत सागर लहराया
तेरा सुंदर सलोना मुख चूम,
दिल खुशियों से भर जाता
संग तेरे हँसी ठिठोली में ,
दुख दर्द कहीं खो जाता…
अपनी गोद तुझे बैठा मैं,
बीती यादों में खो जाता हूँ
जब-जब तेरी आंखों में झाँका
तो अपना ही बचपन पाता हूँ…
कभी तेरा यूँ छुपकर आना
गुदगुदा, पैरों में लिपटना,
कभी गोद में खिलखिलाना
कभी जोर से निश्छल हंसना
कभी तेरा हाथ हिला
यूँ मदमस्त हो चलना,
कभी दौड़ना, कभी छोड़ना
यूँ खिलौनों के लिए मचलना…
ये तेरा नटखटपन,
ये तेरी चंचल शरारतें,
ना जाने क्यूं मुझको
लुभाती तेरी ये हरकतें
एक टॉफ़ी की खातिर
कभी मुझसे लड़ बैठता,
टिकटिक घोड़ा बना मुझे
खुद घुड़सवार बन, मुझे दौड़ाता
कभी सताता, कभी मनाता
कभी मार मुझे, भाग जाता,
कभी रिझाता, कभी खिझाता
मेरे सीने पे चढ़, खूब मचलता…
कभी बेटा, कभी पोता बन
खूब कहानी सुनता रहता,
तो कभी बाप बन वो मुझे
ढेरों डाँट पिलाता रहता…
कभी सर रख सीने पर
कभी गोद में आ छुप कर
बाल क्रीड़ाएँ करता रहता
मनोहारी कन्हैया बन कर…
© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208
मोबा—6387407266