श्री प्रहलाद नारायण माथुर
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☆ फलसफा जिंदगी का ☆
फलसफा जिंदगी का लिखने बैठा था,
कलम स्याही और कुछ खाली पन्ने रखे थे पास में ||
सोच रहा था आज फुर्सत में हूँ,
उकेर दूंगा अपनी जिंदगी इन पन्नों में जो रखे थे साथ में ||
कलम को स्याही में डुबोया ही था,
एक हवा का झोंका आया पन्ने उड़ने लगे जो रखे थे पास में ||
दवात से स्याही बाहर निकल गयी,
लिखे पन्नों पर स्याही बिखर गयी जो रखे थे पास में ||
हवा के झोंके ने मुझे झझकोर दिया,
झोंके से पन्ने इधर-उधरउड़ने लगे जो स्याही में रंगे थे ||
कागज सम्भालने को उठा ही था,
दूर तक उड़ कर चले गए कुछ पन्ने जो पास में रखे थे ||
उड़ते पन्ने कुछ मेरे चेहरे से टकराए,
चेहरे पर कुछ काले धब्बे लग गए लोग मुझ पर हंसने लगे थे ||
नजर उठी तो देखा लोग मुझे देख रहे थे,
लोगों ने मेरी जिंदगी स्याही भरे पन्नों में पढ़ ली जो बिखरे पड़े थे ||
सुंदर रचना