श्री प्रहलाद नारायण माथुर
Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>> मृग तृष्णा
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 5 –हकीकत में एक पत्थर हूँ ☆
मैं अभागा पत्थर पहाड़ों से गिरता पड़ता तलहटी पर आ कर रुक गया,
यहां पहुंचने तक मेरे अनगिनत टुकड़े हो गए,
खुद की दुर्दशा देख खून के आंसू रोता,
तभी कुछ लोगों की नजर मुझ पर पड़ी, पास आकर मुझे देखने लगे ||
मैं हतप्रत रह गया लोग मुझे भगवान की स्वयंभू प्रतिमा बताने लगे,
भगवान के नाम का जयकारा लगने लगा,
चारों तरफ लोगों का हुजूम इकट्ठा होने लगा,
लोग मुझे पानी से नहला मंत्रोचारण के साथ माला प्रसादचढ़ाने लगे ||
चमत्कारी मूर्ति समझ मेरे दर्शन को लोग दूर-दूर से आने लगे,
तिलक सिंदूर से मेरी पूजा करने लगे,
कुछ लोग नारियल बांध मन्नत मांगने लगे,
कुछ दिनों बाद लोग वापिस आकर नारियल-धागा खोलने लगे ||
मन्नत पूरी होने की ख़ुशी में लोग यहां आकर सवामणि करने लगे,
कुछ समझ नहीं आ रहा लोग ये सब क्या करने लगे,
जिस्म का दूसरा टुकड़ा अपनी दुर्दशा पर रो रहा,
रोज नारियल की चोट खाता, लोग उसी पर नारियल फोड़ने लगे ||
मुझे बोलता तू तो अब भगवान हो गया, मेरा तो उद्दार कर दे,
क्या करूं भला? मैं खुद हिल नहीं पाता बूत बने खड़ा हूँ,
मैं कुछ नहीं करता, ना जाने कैसे लोगों की मन्नत पूरी होती है,
जिस दिन टूट जाऊँगा, लोग मुझे उठा फेकेंगे फिर में वापिस तेरे जैसा हो जाऊंगा ||
लोगों का हुजूम बढ़ता गया हमेशा भीड़ रहने लगी,
लोगों को भले अन्धविश्वास में, कुछ तो खुशियां मिलने लगी,
लोग मुझे रोज नई पोशाक पहनाते और प्रसाद चढ़ाते,
लोगों की नजर में भगवान हूँ, हकीकत में पत्थर हूँ पत्थर था पत्थर ही रहूंगा ||
प्रह्लाद नारायण माथुर
अच्छी रचना
जी आपको बहुत धन्यवाद।