श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
(आज “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद साहित्य “ में प्रस्तुत है एक धारावाहिक कथा “स्वतंत्रता संग्राम के अनाम सिपाही -लोकनायक रघु काका ” का द्वितीय भाग।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – स्वतंत्रता संग्राम के अनाम सिपाही -लोकनायक रघु काका-5 ☆
पत्नी के क्रिया कर्म के बाद रघूकाका ने अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया रामखेलावन को पढ़ा लिखा अच्छा इंसान बनाकर पत्नी की आखिरी इच्छा पूरी करने का। रामखेलावन की परवरिश में उन्होंने कोई कमी नहीं की। लेकिन रामखेलावन के आज के व्यवहार से वे टूट गये थे। इन्ही परिस्थितियों में जब स्मृतियो के सागर में तूफान मचा तो उन्हें लगा जैसे स्मृतिपटल का पर्दा फाड़ प्रगट हो उनकी पत्नी उनके आंसू पोंछ टूटे हृदय को दिलासा दे रही हो और रघूकाका बर्दाश्त नहीं कर सके थे। उनके हृदय की पीड़ा आर्तनाद बन कर फूट पड़ी और वे अपने विचारों में खोये हुए बुदबुदा उठे —–
हाय प्रिये तुम कहाँ खो गई, अब तुमसे मिल न सकूँगा।
दुख सुख मन की पीड़ा, कभी किसी से कह न सकूँगा।
घर होगा परिवार भी होगा, दिन होगा रातें भी होगी।
सारे रिश्ते होंगे नाते होंगे, सबसे फिर मुलाकातें होंगी।
तुम ही न होंगी जग में, फिर किससे दिल की बातें होंगी।
।।हाय प्रिये।।।1।।
तुम ऐसे आई मेरे जीवन में, मानों जैसे बहारें आई थी।
दुख सुख मे साथ चली , कदमों से कदम मिलाई थी ।
थका हारा जब होता था, सिरहाने तुमको पाता था।
कोमल हाथों का स्पर्श , सारी पीड़ा हर लेता था
।।।हाय प्रिये।।।2।।।
जीवन के झंझावातों में, दिन रात थपेड़े खाता था ।
उनसे टकराने का साहस तुमसे ही पाता था ।
रूखा सूखा जो कुछ मिलता, उसमें ही खुश रहती थी।
अपना ग़म अपनी पीड़ा, मुझसे कभी न कहती थी ।
।।।हाय प्रिये ।।3।।
तुम मेरी जीवन रेखा थी, तुम ही मेरा हमराज थी।
और मेरे गीतों गजलों की, तुम ही तो आवाज थी ।
नील गगन के पार चली, शब्द मेरे खामोश हो गये ।
ताल मेल सब कुछ बिगड़ा, मेरे सुर साज खो गये।
।।।हाय प्रिये ।।4।।
अब शेष बचे दिन जीवन के, यादों के सहारे काटूंगा ।
अपने ग़म अपनी पीड़ा को, मैं किससे अब बांटूंगा ।
तेरी याद लगाये सीने से, बीते पल में खो जाऊंगा।
ओढ़ कफ़न इक दिन , तेरी तरह ही सो जाऊंगा
।।।हाय प्रिये ।।5।।
इस प्रकार आर्तनाद करते करते, बुदबुदाते रघूकाका के ओंठ कब शांत हो गये पता नहीं चला।
क्रमशः …. 6
© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”
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