श्री प्रहलाद नारायण माथुर
Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>> मृग तृष्णा
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 16 ☆– ख़ुशी ☆
एक दिन घर की खिड़की से झाँक रहा था,
ख़ुशी वहां से गुजर रही थी,
मैंने उसे इशारे से रोका मगर वो आगे निकल गयी ,
देखा खुशी दो दुःख दरवाज़े पर छोड़ चली गयी ||
दरवाजा बन्द रखने लगा दुखों के आने के डर से,
एक दिन फिर किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी,
दरवाजा खोलकर देखा ख़ुशी जा चुकी थी,
देखा खुशी दो दुःख दरवाजे पर छोड़ चली गयी ||
एक दिन फिर खिड़की से झाँक रहा था,
ख़ुशी गुजर रही थी, मैंने रोकने की कोशिश की,
खुशी बोली कभी शक्ल देखी है अपनी आईने में,
देखा खुशी दो दुःख दरवाजे पर छोड़ चली गयी ||
दुखों से संघर्ष करके जिंदगी हार गया,
खिड़की बन्द देख खुशी ने दरवाजे पर दस्तक दी,
देखों आज तुम्हारे लिए खुशियों की सौगात लायी हूँ,
मुझे बेजान देख खुशी दरवाजे पर खुशियां छोड़ चली गयी ||
© प्रह्लाद नारायण माथुर