श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता ख़ुशी ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 16   ☆– ख़ुशी

 

एक दिन घर की खिड़की से झाँक रहा था,

ख़ुशी वहां से गुजर रही थी,

 

मैंने उसे इशारे से रोका मगर वो आगे निकल गयी ,

देखा खुशी दो दुःख दरवाज़े पर छोड़ चली गयी ||

 

दरवाजा बन्द रखने लगा दुखों के आने के डर से,

एक दिन फिर किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी,

दरवाजा खोलकर देखा ख़ुशी जा चुकी थी,

देखा खुशी दो दुःख दरवाजे पर छोड़ चली गयी ||

 

एक दिन फिर खिड़की से झाँक रहा था,

ख़ुशी गुजर रही थी, मैंने रोकने की कोशिश की,

खुशी बोली कभी शक्ल देखी है अपनी आईने में,

देखा खुशी दो दुःख दरवाजे पर छोड़ चली गयी ||

 

दुखों से संघर्ष करके जिंदगी हार गया,

खिड़की बन्द देख खुशी ने दरवाजे पर दस्तक दी,

देखों आज तुम्हारे लिए खुशियों की सौगात लायी हूँ,

मुझे बेजान देख खुशी दरवाजे पर खुशियां छोड़ चली गयी ||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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