सुश्री दामिनी खरे
हम ई-अभिव्यक्ति पर एक अभियान की तरह प्रतिदिन “संदर्भ: एकता शक्ति” के अंतर्गत एक रचना पाठकों के लिए लाने जा रहे हैं। लेखकों से हमारा आग्रह है कि इस विषय पर अपनी सकारात्मक एवं सार्थक रचनाएँ प्रेषित करें। हम सहयोगी “साहित्यम समूह” में “एकता शक्ति आयोजन” में प्राप्त चुनिंदा रचनाओं से इस का प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है सुश्री दामिनी खरे जी की कविता “गांधी -एक सोच”।
☆ सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ गांधी – एक सोच ☆
वर्ष में फिर एक बार
सत्य अहिंसा पुकार
गाँधी के नाम से
बातों से करें वार
गांधी एक पुरुष नहीं
गांधी एक व्यक्ति नहीं
गांधी एक सोच हैं
जिसमे कोई रोष नहीं
ऊंच नीच भेद नही
जाति धर्म भेद नहिं
लिंगभेद रंगभेद
कर्म-वचन भेद नहीं
आज कहाँ हैं गांधी
त्रस्त आधी आबादी
सत्ता मुठ्ठी में बंद
लिख रही है बर्बादी
दिनों को न लेखिए
कर्म को उकेरिए
राह जो दिखा गए
चल कर तो देखिए
रामराज्य सपन आज
विस्मृत कर करें काज
दीनहीन निर्बल की
रखता है कौन लाज
क्षण भर को सोचिए
पापकर्म रोकिए
आचरण सुधार कर
शुचिता को पोषिए
रामराज्य कल्पना
भारती की वन्दना
शंख नाद से करें
भारत की अर्चना।।
© सुश्री दामिनी खरे
भोपाल
मोबाइल 09425693828
2.10.20
≈ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈