श्री प्रहलाद नारायण माथुर
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 37 ☆
☆ लोग इतने क्यों बेचैन है ☆
खुश हो जा आज तू खामोश क्यों है,
देख तेरी शान में राह में लोगों ने फूल बिछाये हैं ||
कल तक जो लोग तेरे चेहरे से नफरत करते थे,
वे आज तुझे बार-बार कंधा देने को बेचेन हो रहे हैं ||
आज तो तेरी शान ही निराली है,
सब अदब से खड़े होकर तुझे हाथ जोड़ रहे हैं ||
बस एक पल ऑंखे खोल नजारा तो देख ले,
लोग तो तेरी एक झलक पाने को बेचैन हो रहे हैं ||
कल तक जो तेरी तरफ झांकते तक ना थे,
आज वो सब खिड़कियां खोलकर तुझे देखने को तरस रहे हैं ||
यादगार लम्हें हैं उसे देख वापिस आंख मूंद लेना,
एक ही मौका आता है जीवन में, लोगों के आंसू थम नहीं रहे हैं ||
जनाजे में कौन-कौन शामिल है,
एक झलक तो देख ले, इतने तो पराये भी कभी रूठते नहीं हैं ||
© प्रह्लाद नारायण माथुर