मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना
सुश्री शुभदा बाजपेई
(सुश्री शुभदा बाजपेई जी हिंदी साहित्य की गीत ,गज़ल, मुक्तक,छन्द,दोहे विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। सुश्री शुभदा जी कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं एवं आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर कई प्रस्तुतियां। आज प्रस्तुत है आपकी एक आशावादी कविता “हार गए यदि हिम्मत, समझो, सारी बाजी हारे हैं”. )
☆ कविता – हार गए यदि हिम्मत, समझो, सारी बाजी हारे हैं ☆
दुनिया भर मे कोरोना के, देखो नखरे न्यारे हैं
सहमी -सहमी लगे जिन्दगी, सहमे चाँद सितारे हैं
आना -जाना बंद हुआ है, सैर -सपाटे छूट गए
नदिया रोती, सागर रूठा, टूटे सभी किनारे हैं
हाथ मिलाना छोड़ गए सब, नमस्कार की जै-जै है
रिश्तों में दूरी-मजबूरी, मित्र सभी बेचारे हैं
साँस -साँस भारी जीवन पर मगर रोग से लड़ना है
हार गए यदि हिम्मत , समझो, सारी बाजी हारे हैं
आशाओं का दीप जला कर हमें प्रतीक्षा करनी है
होगी सुबह, सदा कब रहने वाले ये अँधियारे हैं
कभी किसी के यहाँ नहीं,दिन सदा एक से रहते हैं
अधरों पर मुस्कान मधुर, आँखों में आँसू खारे हैं
© सुश्री शुभदा बाजपेई
कानपुर, उत्तर प्रदेश