डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ 

(डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन। वर्तमान में संरक्षक ‘दजेयोर्ग अंतर्राष्ट्रीय भाषा संस्थान’, सूरत. अपने मस्तमौला  स्वभाव एवं बेबाक अभिव्यक्ति के लिए प्रसिद्ध। आज प्रस्तुत है डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर ‘ जी द्वारा रचित हिंदी दिवस पर एक गीत “हिदी बोलें पढ़ें, लिखें सब हिंदी को अपनाएँ“।) 

 ☆ हिंदी दिवस पर एक गीत – हिदी बोलें पढ़ें, लिखें सब हिंदी को अपनाएँ ☆ डॉ.गंगा प्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ ☆

अपनेपन की मिसरी घोले मीठे बोल सुहाएं।

हिदी बोलें, पढ़ें, लिखें सब हिंदी को अपनाएँ।

संस्कृत है वटवृक्ष राष्टृ की फैली सरल जटाएँ

असमी, उड़िया, गुजराती औ मलयालम भाषाएँ

तमिल, तेलगू, कन्नड़, बांग्ला सुंदर-सी शाखाएँ

सब में मधु घोला है सारी अमृत ही बरसाएँ

इनको छोड़ पराई माई कैसे गले लगाएँ.

अपनी भाषा पढ़ेँ, लिखेँ औ उसको ही सरसाएँ।।

जहाँ किसी ने अपनी माँ का आदर नहीं किया है

कहो कहाँ पर गरल अयश का उसने नहीं पिया है

गौरव मिलता उसी वीर को जिसने माँ का मान किया

माँ की खातिर खुद को जिसने हँस-हँस के कुर्बान किया

अपनी माँ  ठुकराकर कैसे गीत और के गाएँ?

हिदी बोलें पढ़ें, लिखें सब हिंदी को अपनाएँ।।

अपनी आज़ादी की खातिर अपनी ही भाषाएँ

लड़ने वाले वीरों के हित करती रहीं दुआएँ

और बाँचती रहीं सदा ही उनकी अमर कथाएँ

अंग्रेज़ी ने कब आँकी हैं जन-मन की पीड़ाएँ

फिर क्यों इतनी ममता उससे, क्योंकर मोह दिखाएँ ?

हिदी बोलें पढ़ें, लिखें सब हिंदी को अपनाएँ।।

अपनी सरिता का जल पीते, अपना अन्न उगाते

अपनी धरती का हर कोना फ़सलों से लहराते

अपनी भाषाएँ हैं अपनी परम पुनीत ऋचाएँ

अपनेपन की हो सकती हैं इनसे ही आशाएँ

अब तो और नहीं इंग्लिश की फैलें जटिल लताएँ।

हिदी बोलें पढ़ें, लिखें सब हिंदी को अपनाएँ।।

©  डॉ. गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’

सूरत, गुजरात

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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