महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 197 ? 

अभंग… प्रेम, शांति, और सुख का गान ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

हिंदी रचना ( हे शब्द अंतरीचे.)

निरामय हो जीवन मेरा,

न हो कोई दु:ख का डेरा।

मन के कोने उजियारे हों,

सत्य-प्रेम के तारे हों।

*

चंचल मन भी शांत रहे,

हर दुख से अछूता रहे।

तन-मन में ऐसा प्रकाश हो,

जैसे सूरज का आभास हो।

*

न बैर हो, न कोई राग,

हर दिशा में केवल सुहाग।

नफरत का हर रंग मिटे,

प्यार में सब ही सिमटे।

*

निरामय हो काया सारी,

न हो कोई चिंता भारी।

प्रेम, शांति, और सुख का गान,

हो जीवन का सच्चा मान।

*

साथ निभाएं, साथ बढ़ें,

प्रेम का संदेश लाएं,

दिल में हो इंसानियत,

भेदभाव सब मिटाएं।

*

कविराज की यही पुकार

दुःख दूर हो हे महाराज

अर्ज मेरी स्वीकार करो

मेरे जीवन को तेरा ही साज।

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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