हेमन्त बावनकर
हम ई-अभिव्यक्ति पर एक अभियान की तरह प्रतिदिन “संदर्भ: एकता शक्ति” के अंतर्गत एक रचना पाठकों से साझा कर रहे हैं। हमारा आग्रह है कि इस विषय पर अपनी सकारात्मक एवं सार्थक रचनाएँ प्रेषित करें। हमने सहयोगी “साहित्यम समूह” में “एकता शक्ति आयोजन” में प्राप्त चुनिंदा रचनाओं से इस अभियान को प्रारम्भ कर दिया हैं। आज प्रस्तुत है मेरी एक प्रस्तुति “ एकता और शक्ति”।
☆ सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ एकता और शक्ति ☆
ब्रेकिंग न्यूज़ आती है
उतरता है
तिरंगे में लिपटा
अमर शहीद!
तुम खोते हो
सैकड़ों के बराबर – एक सैनिक
किन्तु,
उसका परिवार खो देता है
बहुत सारे रिश्ते
जिन्हें तुम नहीं जानते।
तुमने अपनी
और
उसने अपनी
रस्म निभाई है।
बस यही
एक शहीद की
सम्मानजनक विदाई है।
चले जाओगे तुम
उसकी विदाई के बाद
भूल जाओगे तुम
उसकी शहादत
और शायद
तुम्हें आएगी बरसों बाद
कभी-कभी उसकी याद।
उसने अंतिम सफर में
तिरंगे को ओढ़कर
सम्मानजनक विदाई पाई है
जरा दिल पर हाथ रख पूछना
क्या तुमने बतौर नागरिक
सुरक्षित सरहदों के भीतर
अपनी रस्म निभाई है ?
तुम्हें मिली है
स्वतन्त्रता विरासत में
लोकतन्त्र के साथ।
एक के साथ एक मुफ्त!
जिसकी रक्षा के लिए
उसने अपना सारा जीवन
सरहद पर खोया है।
उसकी अंतिम बूँद के लिए
अपना पराया भी रोया है।
तुम नहीं जानते
एक सैनिक का दोहरा जीवन!
वह जीता है एक जीवन
अपने परिवार के लिए
और
दूसरा जीवन
सरहद की हिफाजत के लिए।
वह भूल जाता है
अपनी जाति, धर्म और संप्रदाय।
वर्दी पहनने के बाद
कोई नहीं रहता है
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई
हो जाते हैं सच्चे भाई-भाई
उनका एक ही रहता है धर्म
मात्र – राष्ट्र धर्म!
वे लड़ते हैं तुम्हारे लिए
कंधे से कंधा मिलाकर।
जाति, धर्म, संप्रदाय, परिवार
अपना सब कुछ भुलाकर।
और तुम
महफूज सरहद के अंदर
लड़ाते रहते हो आपस में कंधा
कभी धर्म का,
कभी जाति का,
कभी संप्रदाय का।
फिर
एकता और शक्ति की बातें करते हो
अमर शहीदों पर पुष्प अर्पित करते हो
धिक्कार है तुम पर
कब कंधे से कंधा लड़ाना बंद करोगे
कब कंधे से कंधा मिलाकर चलोगे
कब अपना राष्ट्रधर्म निभाओगे?
इन सबके बीच कुछ लोगों ने
जीवित रखी है मशाल
निःस्वार्थ बेमिसाल
तुम बढ़ाओ तो सही
अपना एक हाथ
अपने आप जुड़ जायेंगे
करोड़ों हाथ।
बस इतनी सी ही तो चाहिए
तुम्हारी इच्छा शक्ति,
राष्ट्रधर्म और राष्ट्रभक्ति….
तुम्हारी एकता और शक्ति
© हेमन्त बावनकर
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
वर्तमान पर यथार्थ बोध करवाती वैचारिक रचना