सुश्री लीना मित्तल खेरिया
संक्षिप्त परिचय
शिक्षा – एम बी ए
सम्प्रत्ति – हिन्दी कवितायें लिखने का बहुत शौक है।
प्रकाशन – आपके दो काव्य संग्रह ‘Direct दिल से ‘ एवं ‘सफर एहसासों का’ प्रकाशित। अनेकोनेक रचनायें सॉंझा संकलन राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित ।
पुरस्कार/ सम्मान – आपको कई पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत/ सम्मानित। इनमें प्रमुख हैं प्राईड ऑफ विमेन अवार्ड, स्टार डायमंड अचीवर्स अवार्ड, अटल साहित्य गौरव सम्मान, शहीद स्मृति सम्मान, मातृ भूमि सम्मान, नवीन कदम वीणापाणी सम्मान, लिटरेरी कैप्टन अवार्ड, आयाति साहित्य सम्मान आदि।
☆ ग़ज़ल – ‘‘माना कि उलझे उलझे से हैं दस्तूर ज़िंदगी के…’’ ☆ सुश्री लीना मित्तल खेरिया ☆
क्यूँ फ़िज़ूल ही दिलो जाँ को जलाया जाए
चलो आज से जी भर कर मुस्कुराया जाए
मन के अलाव पर पकता रहा कुछ न कुछ
चलो कुछ ज़ायक़ेदार बना के खाया जाए
क्यूँ कैद हैं नफ़रतों की आँधियाँ हर मन में
बेमुरव्वत जज़्बों का जनाजा उठाया जाए
थक गए इशारों पर कठपुतली से नाचते
चलो इस रंग मंच का पर्दा गिराया जाए
उँगली उठाने वाले ख़ुद भी देख लें आईना
उसके बाद ही फिर औरों को दिखाया जाए
माना कि उलझे उलझे से हैं दस्तूर ज़िंदगी के
कोशिश है पूरी शिद्दत से उन्हें निभाया जाए
ज़हन में कौंधती हैं बिजली सी यादें उनकी
चलो फिर नये सिरे से उनको भुलाया जाए
ताश के पत्तों सा बिखरा आशियाना अपना
चलो अब एक नया ही घरौंदा बनाया जाए
ना ही वो दावतें न वो मेहमान नवाज़ी बाकी
अब किसके लिए दस्तरख़ान बिछाया जाए
मजलिस में बैठ कर जुगनू सारे हैं सोच रहे
मनसूबा है कि चाँद सूरज को हटाया जाए
आख़िर ख़ुद से ही तू क्यूँ आजिज़ है लीना
चलो ख़ुद ही से हर फ़ासला मिटाया जाए
(अलाव- आंच, बेमुरव्वत- बेरहम, शिद्दत- ईमानदारी, दस्तरख़ान- मेज़पोश, मजलिस- सभा, मनसूबा- इरादा, आजिज़- परेशान)
© सुश्री लीना मित्तल खेरिया
बोड़कदेव, अहमदाबाद, गुजरात
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बेहतरीन शायरी