महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.२७॥ ☆
सव्यापारम अहनि न तथा पीडयेद विप्रयोगः
शङ्के रात्रौ गुरुतरशुचं निर्विनोदां सखीं ते
मत्सन्देशः सुखयितुम अलं पश्य साध्वीं निशीथे
ताम उन्निद्राम अवनिशयनां सौधवातायनस्थः॥२.२७॥
दिन में विरह की व्यथा व्यस्तता से
है संभव न होगी निशा में यथा हो
मैं अनुमानता हूं गहन शोक मन का
जो निशि में सताता मेरी प्रियतमा को
तो साध्वी तव सखी को रजनि में
पड़ी भूमि पर देख उन्निद्र साथी
उचित है कि संदेश मेरा सुनाकर
दो सुख बैठ गृह गवाक्ष पर प्रवासी
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈