महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत …. उत्तरमेघः ॥२.३३॥ ☆
जाने सख्यास तव मयि मनः संभृतस्नेहमस्माद
इत्थंभूतां प्रथमविरहे ताम अहं तर्कयामि
वाचालं मां न खलु सुभगंमन्यभावः करोति
प्रत्यक्षं ते निखिलम अचिराद भ्रातर उक्तं मया यत॥२.३३॥
तुम्हारी सखी का गहन नेह मुझपर
इसे मैं भलीभांति पहचानता हॅू
दशा इस प्रथम विरह में अतः उसकी
यही है हुई, खूब मैं जानता हॅू
नही यह कि अपनत्व का भाव मुझसे
मेरी प्रियतमा की प्रशंसा कराता
वरन यही प्रत्यक्ष मैने कहा
उसे तुम स्वंय लखोगे शीघ्र भ्राता
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈