॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 2 (16-20) ॥ ☆
उस देवता पितृगण की क्रिया साधिका नंदिनी का सहज अनुसरण कर
किया भूप ने श्राद्ध विधि पूर्ण जैसे कि साक्षात श्रद्धा हो विधि अनुगमनकर ॥16॥
जल से निकलता हुआ वन सुअरदल व आवास द्रुम की दिशा मोर जाते
मृगवास शाद्वल धरणि शाम सबको लखा और वन को सुश्यामल बनाते॥17॥
भरे ऐन के भार से गौं औं तन की सबल पुष्ठि के भार से स्वस्थ राजा
तपोवन विजन मध्य निज राह चलते थे दिखते बढ़ाते हुये वन्य आभा ॥18॥
गुरू धेनु अनुयायी उस बर नृपति को सुवन प्रान्त से शाम को लौट आने
निहार अपलक नयन से रानी थी लगती जैसे तृषा मिटाते ॥ 19॥
नरेश आगे धर धर्मपत्नी को पार करते थे राह वन्या
औं दम्पती बीच सुशोभती धेनु निशा दिवस बीच यभेैव संध्या ॥20॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈