॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 2 (36-40) ॥ ☆
तब उस अँधेरी गिरिकन्दरा को स्वदंत आभा से कर विभासित
उस शम्भु अनुचर ने फिर नृपति से हँसते हुये बात कही प्रकाशित ॥46॥
एकछत्र स्वामित्व वसुन्धरा का, नई उमर स्वस्थ श्शरीर सुन्दर
इतना बड़ा त्याग पाने जरा सा, दिखते मुझे मूर्ख हो तुम अधिकतर ॥47॥
बचा जो जीवन पितैव राजन करेगा नित धन – प्रजा सुरक्षा
औं तव मरण केवल एक गौ की ही कर सकेगा तो प्राण रक्षा ॥48॥
इस एक गौ के विनाश से व्यर्थ गुरू की अवज्ञा से डर रहे तुम
परन्तु ऐसी हजार गायें प्रदान करने न समर्थ क्या तुम ? ॥49॥
जो आत्म ओजस्वी देह को तुम अनेक हित हेतु रखो बचायें
विशाल पृथ्वी पर स्वर्ग सदृश है राज्य यह इन्द्र भी जो न पाये ॥50॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈