डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव
मातृ दिवस विशेष
☆ जिसका जीवन मां चरणों में ईश्वर उसे दिखता है ☆
जो निज गर्भ में नौ माह सृजन करती है,
निज लहू से निज संताने सींचा करती है।
निज मांस मज्जा जीन गुणसूत्र उसे देती है,
जो पालन पोषण करती है वो मां होती है।।
जीवन देती दुनिया में लाती प्रथम गुरु होती है,
मां की जान सदा ही निज बच्चों में ही होती है।
जैसे धरा की दुनिया सूर्य के चंहु ओर होती है,
मां की दुनिया संतानों के आसपास ही होती है।।
क्षिति जल पावक गगन समीरा भी मां होती है,
जग से वही मिलाती और सही ग़लत बताती है।
व्यक्तित्व गढ़ सवांरती संस्कार वही सिखाती है ,
दु:ख निराशा असफलता में धीरज दिखाती है।
जीवन है संघर्ष धरती पर जो हारे वो गिरता है,
गिर कर उठ जाए जो संग्राम वही जय करता है।
असफलता से सफलता दुख से सुख मिलता है,
जो निराश हो नहीं उठे वो मां का दूध लजाता है।।
वो बेटे में प्रेमी खोजे और निज पति सा रूप गढ़े,
वो बेटे की दोस्त बने और उसमें पिता भी पा जाए,
वो बेटी की दोस्त बने व संस्कार सर्जना सिखलाए,
वो बेटी में खुद को खोजे और मां को भी पा जाए।।
मां जब हमसे बिछड़ती है जीवन सूना लगता है,
अपनापन खो जाता है सब कुछ दूभर लगता है।
मां की उपेक्षा करे जो धिक्कार उसे सब करता है,
अपमानित जग से होता वो जीते जी ही मरता है।।
जीते जी स्वर्ग नहीं मिलता भगवान नहीं मिलता है,
मां का आंचल मिले जिसे स्वर्ग उसे यहां दिखता है।
मां नहीं मिलती दुनिया में बाकी सब मिल जाता है,
जिसका जीवन मां चरणों में ईश्वर उसे दिखता है।।
© डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव
Beautiful poem .
धन्यवाद
Nice poem,
धन्यवाद आशा
Excellent poem.
धन्यवाद डॉ साहब
Bahut sundar chitran sir
धन्यवाद शिव जी
Is it you PK Sir ? .. really unbelievable..
We worked together for a while, and it was almost 4 years; but never came acros to your this marvelous capability…. Fantastic illustration ……. Congrats..
This is Dr. Bhatia
धन्यवाद भाटिया जी। हां मैं आपका ही मित्र हूं