॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #4 (81-85) ॥ ☆

 

रघु ने लोहित पार की – सुन ज्योतिषपुर राज

काँपे चयनित वृक्ष से गज बंधन के काज ॥ 81॥

 

डरा देख दुर्दिन समझ रघु के रथ की धूल

तब फिर करता युद्ध वन्या सेना के प्रतिकूल ॥ 82॥

 

कामरूप नृप भेंट देै अनुपम भट गजराज

की शरणागत प्रार्थना रघु से रखने लाज ॥ 83॥

 

स्वर्ण सिंहासन पर बिठा रत्नपुष्प से पूज

रघु चरणों  पै आ झुका कामरूप का भूप ॥ 84॥

 

छत्रहीन राजाओं के सिर पर रथरज डाल

लौटे कर के दिग्विजय हो रघुराज निहाल ॥ 85॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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