॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #5 (26-30) ॥ ☆
यह बात सुन ब्राहम्ण कौत्स्य ने, राजइच्छा ‘तथा हो ‘ कह स्वीकार कर ली
रघु ने भी पृथ्वी को निस्तार सा पा, कौबेर धन की ही बस कामना की ॥ 26॥
वशिष्ठ मत्रावेशित रघुरथ आकाश – सागर और पर्वतों पर
भी वायुगति से बढ़ता जल्द सा, था बढ़ रहा अपने पथ पर बिना डर ॥ 27॥
फिर रात्रि होते एक सामान्य सामन्त सा शयन रथ में किया धीरता से
था शस्त्र सज्जित अतः लिया निर्णय विजय पाने धनपति पै निज वीरता से । 28।
सविस्मय कहा कोषगृह सेवकों ने -ये प्रस्थान हित प्राप्त तैयार रघु से
हुई कोष के बीच वर्षा अकस्मात सोना गिरा बहुत सा सहज नभ से ॥ 29॥
बिना आक्रमण किये ही स्वर्ण पाने की सुन बात रघुको हुआ हर्ष अति तब
कुबेर से पाये सुमेरू के खण्ड सा दीप्त सोना दिया कौत्स्य को सब ॥ 30॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈