डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव
☆ लेकर हर विरही की अंतर ज्वाला ☆
लेकर हर विरही की अंतर ज्वाला,
मैं जन-तन-मन सुलगाने आया हूं।
मैं खुद ही विरही प्यासा मतवाला,
प्रणयी-उर-प्यास मिटाने आया हूं।।
लेकर हर——————-आया हूं।।
मैं ज्वालामुखी की हूं अंतर ज्वाला,
निज उर अंगारे बरसाने आया हूं।
मैं व्योम की हूं प्यासी बादल शाला,
धरती की प्यास मिटाने आया हूं।।
लेकर हर——————–आया हूं।।
मैं तो पवन हूं पतझड़ का मतवाला,
वृक्षों की हर पात गिराने आया हूं।
मैं बसंत का विरही प्यासा मदवाला,
वन-उपवन-नगर महकाने आया हूं।।
लेकर हर———————-आया हूं।।
प्रिय मैं यौवन की अक्षत मधुशाला,
उर की मधु प्यास जगाने आया हूं।
मैं हूं खुद प्यासा खाली मधु प्याला,
विरही को मधुपान कराने आया हूं।।
लेकर हर———————-आया हूं।।
मैं शलभ दीपशिखा पे जलने वाला,
प्रियतम् पर प्राण चढ़ाने आया हूं।
मैं हूं मधुप अलि मधुर गुंजन वाला,
शूलों से विध मधु चुराने आया हूं।।
लेकर हर———————-आया हूं।।
मैं हूं चातक चिर तृष्णा है मैंने पाला,
पी स्वाती वर्षा प्यास मिटाने आया हूं।
मैं अनंत अतल सागर खारे जल वाला,
घन बन वन उपवन महकाने आया हूं।।
लेकर हर————————आया हूं।।
मैं ही हूं शिव प्रलयंकारी तांडववाला,
सती-वियोग-संताप बुझाने आया हूं।
मैं ही हूं नीलकंठ विषपान करनें वाला,
भूमण्डल सकल गरल मिटाने आया हूं।।
लेकर हर———————–आया हूं।।
© डॉ प्रेम कृष्ण श्रीवास्तव
Purity of thought is unique
Thanks Ashok