॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #8 (36-40) ॥ ☆

ऋतुपुष्पों को लजाती मधुर महकती माल

इन्दुमती के वक्ष पर आ टपकी तत्काल ॥ 36॥

 

अनुपम कुसुमाघात से आकुल हो बिन त्राण

राहु ग्रसित सी चंद्रिका सी हो गई निष्प्राण ॥ 37॥

 

इन्दुमति को देख यों अज हो गये अचेत

तैल बिन्दु हर दीप की गिरती शिखा समेत ॥ 38॥

 

दम्पति के परिजनों की सुनकर आर्त पुकार

कमल ताल के पक्षी भी कूके कर चीत्कार ॥ 39॥

 

राजा चेते पा पवन – जल शीतोपचार

किन्तु न रानी में दिखा जीवन का संचार ॥ 40॥ अ

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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