॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #8 (61-65) ॥ ☆

मन था – आम्र प्रियंगु का करना तुम्हें विवाह

उचित नहीं जो गई बिना कर उसका निर्वाह ॥ 61॥

 

तुमसे दोहद प्राप्त यह दे जब पुष्प अशोक

हार की जगह तिलाज्जंलि में होगा उदयोग ? ॥ 62॥

 

सुंदरि तब आघात का रख आभार अशोक

पुष्प अश्रुवत गिरा के दिखता अधिक सशोक ॥ 63॥

 

किन्नर कंठी ! बकुल यह ज्यों सुरभित तब श्वाँस

से रच रसना अधूरी, गई छोड़ क्यों साथ ? ॥ 64॥

 

सम सुख – दुख भागी सखी, चंद्रकिरण सा पुत्र

एकनिष्ठ मैं स्वजन तब, निठुर त्याग तब अत्र ॥ 65॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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