॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #10 (1-5) ॥ ☆
शासन करते इंद्र सम नृप के इसी प्रकार
वर्ष कुछ ही कम बीत गये उसके दसक हजार ॥ 1 ॥
पर पुरखों से उऋण हो सकने का विश्वास
दे सकने वाला न मिल पाया पृत्र – प्रकाश ॥ 2 ॥
आशा में महाराज का बीता लंबाकाल
मंथन पहले रत्न बिन ज्यों सागर का हाल ॥ 3 ॥
जितेन्द्रिय दशरथ को थी प्रबल पुत्र की चाह
ऋघ्य श्रृंग मुनि आदि ने रचा यज्ञ सोत्साह ॥ 4 ॥
ग्रीष्मतप्त जाते यथा सघन वृक्ष के पास
रावण पीडि़त देव सब गये विष्णु के पास ॥ 5॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈