॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #12 (26-30) ॥ ☆
सर्गः-12
करती अनुसरण राम का सिया सुनारि अनूप।
गुणोन्मुखी लक्ष्मी सदृश हुई सुशोभित खूब।।26।।
अनुसूया के वचन की बिखरी पुण्य सुगंध।
पाकर भौंरे भूल गये वन पुष्पों की गंध।।27।।
सांध्य मेघ के वर्ण का वन में मिला विराध।
जैसे चंद्रपथ रोकने ‘राहु’ करे अपराध।।28।।
वर्षा ऋतु में ग्रह यथा हरते वर्षा-धार।
उस राक्षस ने जानकी हर ली उसी प्रकार।।29।।
राम-लखन ने तब उसे अतिशय पीस-पछाड़।
आश्रम दूषण बचाने दिया भूमि में गाड़।।30।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈