॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (26 – 30) ॥ ☆
सर्गः-13
माल्यवान गिरि है वहीं जो छूता आकाश।
वर्षा मेरे अश्रुसी हुई थी जिसके पास।।26।।
बिना तुम्हारे असह थी जहाँ पुष्प की गंध।
वर्षा में केका मधुर और कदम्ब अनुबंध।।27।।
घन-गर्जन से डरी तुम दुबक चिपक चुपचाप।
की कर पिछली याद में कटी थी मम बरसात।।28।।
वर्षापोषित नवान्कुर की शोभा औ’ आम।
याद दिलाती थी मुझे नयन तेरे अरूणाभ।।29।।
पंपासर जो वेत के वन से था आच्छन्न।
दृष्टि देखती दूर से सारसश्री सम्पन्न।।30।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈