॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (51 – 55) ॥ ☆
सर्गः-13
मुनिपत्नी अनसूया ने तापस जन स्नान।
हेतु त्रिपथगा गंगा का किया प्रवाह विधान।।51।।
निष्कम्पित तरू यहाँ के ऋषिगण सम ध्यानस्थ।
लगते जैसे योग में है सबके सब व्यस्त।।52।।
सफल यहाँ वटवृक्ष वह तव प्रार्थित तत्काल।
पद्यराग मणि सम फलों से शोभित खुशहाल।।53।।
देखो सीते! गंगा छवि नील यमुन से भिन्न।
कहीं जो उजली यष्टि सी नीलम जटित प्रसन्न।।54।।
कहीं नील संग सित कमल की माला अभिराम।
या मानसप्रिय हंसदल, श्वेत बीच ज्यों श्याम।।55।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈