॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #13 (71 – 75) ॥ ☆
सर्गः-13
राम पुनः मिले सचिव से जो थे वृद्ध महान।
बढ़ी श्मश्रु से जोदिखे बट के वृक्ष समान।।71।।
ये सुग्रीव विपद सखा, ये विभीषण रणधीर।
ऐसा कहते राम के भरत हो उठे अधीर।।72अ।।
लक्ष्मण से पहले मिले उनसे सादर धाय।
विनत वंदना की पुनः उनको-गले लगाय।।72ब।।
फिर लक्ष्मण से यों मिले छाती से लपटाय।
इंद्रजीत की शक्ति कृत दाग न फिर दुख जाय।।73।।
पाकर आज्ञा राम की धर कर मनुज शरीर।
वानर-पति चढ़े गजों पै जो मद-वर्षी धीर।।74।।
हुये विभीषण भी अचर उन रथ पै आसीन।
रामाज्ञा पा जिनसे थे मायारथ भी हीन।।75।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈