॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #14 (1 – 5) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -14
वहाँ लखा दशरथ तनय ने विपन्न दो मात ।
श्री विहीन जैसे लता आश्रय – तरू – अपघात।।1 ।।
लख न सकी मुख सुतों के अश्रु भरे थे नैन ।
किन्तु स्पर्श सुख से मिला उन्हें मिलन का चैन।।2 ।।
प्रेम – अश्रु की शीत से शांत हुई दुख पीर ।
हिमगिरि जल से ज्यों गरम गंगा सरयू नीर।।3 ।।
सहलाये छू देह को माँ ने सुतों के घाव ।
वीर प्रसू गौरव से था बड़ा स्नेह का भाव।।4 ।।
तथा कोसती स्वतः को कह सब दुख का मूल ।
सीता ने आ वंदना की माँ की अनुकूल।।5 ।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈