॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #14 (61 – 65) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -14
‘‘मेरी तरफ से पूँछे वे राजा से यह बात।
अग्नि परीक्षा ले मेरी सुन केवल अपवाद।।61अ।।
दिया त्याग जो मुझे यह है क्या धर्म-विधान।
या रघुकुल अनुरूप यह हो इसका संधान’’।।61ब।।
अथवा मेरे विषय में है यह स्वेच्छाचार।
या मम पिछले जन्मों के पापों का प्रतिकार।।62।।
राजलक्ष्मी को छोड़ तुम वन गये थे मम साथ।
इससे पास उसको मेरा छोड़ दिया विश्वास?।।63।।
राक्षस पीड़ित थे कभी जिन तपसिन के साथ।
उनको मैंने दी शरण अभय आपके साथ।।64अ।।
कृपा आपकी थी बड़ी थी मैं निडर सनाथ।
उन तापस की शरण अब जाऊँ मैं कैसे नाथ?।।64ब।।
पलता है मम उदर में अंश तुम्हारा आज।
नहिं तो रखती मैं भला यह जीवन किस काज?।।65।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈