॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #14 (66 – 70) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -14
फिर प्रसूति पश्चात मैं तप में हो तल्लीन।
प्रभु से माँगूगी तुम्हें हो विनीत अतिदीन।।66।।
वर्णों और आश्रमों का नृप पर रक्षा भार।
होता इससे भी मेरा उचित तुम्हें उद्धार।।67।।
‘‘ठीक कहूँगा राम से मैं यह करूण पुकार’’
कह लक्ष्मण ओझल हुये, उठा रूदन-चीत्कार।।68।।
था सीता के क्लेश में दुखी हर एक वन ठौर।
शिखी भीत, पुष्पाश्रु तरू मृग ने उगले कौर।।69।।
व्याधाहत पक्षी को लख श्लोक रूप में शोक।
जिनका था वह वाल्मीकि कर न सके दुख-रोक।।70अ।।
कुश समिधा ले लौटते पा रोदन-आभास।
अनुमानित पथ पार कर पहुँचे सीता पास।।70ब।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈