॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #16 (11 – 15) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -16
स्वामी रहित आज उस की अयोध्या की, प्राचीर खण्डहर हुई दिख रही है।
जो सांध्य दुस्तर प्रभन्जन से आक्रान्त धन सी, कथा अपनी खुद लिख रही है।।11।।
जिन मार्ग में रात को साज नूपुर, संचार करती थी अभिसारिकायें।
अब उन्हीं पर मांस की खोज में शोर करती भटकती हैं श्रृगालिकायें।।12।।
जो ताल-जल, नारियां के करों से पा स्पर्श, कल-कल मधुर ध्वनि था गाता।
वहीं अब वहां वन्य भैसों के श्रृंगों से आहत, प्रताड़ित हो रोता दिखाता।।13।।
दावाग्नि से बचे, आवास उजड़े मयूरों को वृक्षों का अब है सहारा।
भुला नृत्य-तालों को होकर वनैलें, भटकते हुये दिखता उनका नजारा।।14।।
मेरे नगर के वे सोपान जिन पर, कभी रच महावर निकलती थी नारी।
अब तुरत मारे मृगों के रूधिर से रंगे, सिंह पंजों से दबते हैं भारी।।15।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈