॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #17 (6 – 10) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -17
चन्द्र-ज्योत्सना कुमुदपति में ज्यों होती लीन।
त्यों कुश के संग हो सती कुमुद भी हुई विलीन।।6।।
कुश ने पाया स्वर्ग में अर्द्ध इन्द्रासन भाग।
इन्द्राणी की सखी हुई कुमुद भी पा पारिजात।।7।।
कुश के अंतिम वचन का रख मन मे अनुदेश।
बुद्ध मंत्रियों ने किया ‘‘अतिथि’’ का राजभिषेक।।8।।
बुला मिस्त्रियों को कहा करने नव निर्माण।
चौखम्भों पर वेदिका अभिषेक हित आसान।।9।।
भद्रपीठ पर बिठा तब अतिथि को सह सम्मान।
तीर्थ जलों से कराया सचिवों ने स्नान।।10।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈