॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #17 (46 – 50) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -17
चंचल लक्ष्मी भी रही, उस हँस-मुख के पास।
जैसे रेखा स्वर्ण की तजे न निकष-निवास।।46।।
राजनीति सह शौर्य से हुआ अतिथि विख्यात।
बिना शौर्य नृप भीरू है, बिना नीति पशु ज्ञात।।47।।
ज्यों निरभ्र आकाश में रवि को सब कुछ ज्ञात।
त्योंही उसको चरों से रहा न कुछ अज्ञात।।48।।
समय विभाजन कार्य हित करके शास्त्रानुसार।
मनोयोग से करता था नृप सारे व्यवहार।।49।।
सचिवों से होती रही गूढ़ मंत्रणा नित्य।
किन्तु न खुल पाया कभी कोई निहित रहस्य।।50।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈