हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 17 (76-81)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #17 (76 – 81) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -17

 

यदपि दिग्विजय कामना थी पर हित प्रतिकूल।

तदपि अश्वमेघ चाह थी उचित धर्म-अनुकूल।।76।।

 

शास्त्रविहित पथ मानकर चल नियमों के साथ।

इंद्र-देव के देव सम बना राज-अधिराज।।77।।

 

गुण समानता से हुआ वह पंचम दिक्पाल।

महाभूत में षष्ठ औं अष्ट्म भू भृतपाल।।78।।

 

जैसे सुनते देव सब विनत इंद्र आदेश।

तैसेहि सब राजाओं को थे उसके संदेश।।79।।

 

अश्वमेघ में याज्ञिकों को कर दक्षिणा प्रदान।

‘अतिथि’ धनद अभिधान से बना कुबेर समान।।80।।

 

इंद्र ने वर्षा की, यम ने रोगों का रोका बढ़ाव।

वरूण ने जलमार्ग दे दिखाये मित्रभाव।

कोष में रघु-राम के युग सी कुबेर ने वृद्धि की,

लोकपालों ने अतिथि की, भय से सब समृद्धि की।।81।।

सत्रहवां सर्ग समाप्त

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈