॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 18 (41 – 45) ॥ ☆
रघुवंश सर्ग : -18
सिंहासन पर बैठे राजा के लधु आलक्तक-युक्त चरण।
जो पाद-पीठ पर जम न सकें, राजाओं ने उनको किया नमन।।41।।
ज्यों इन्द्रनील मणि छोटा भी कहलाता गुण से महानील।
त्यों ही महाराज सुदर्शन नाम था सार्थक देख शील।।42।।
चामर से नित जिसके गालों पै खेलती थी काली अलकें।
उस बाल नृपति की आज्ञा हित जल-निधि तक उत्सुक थी पलकें।।43।।
स्वर्णाभूषण-भूषित ललाट पै तिलक सजाये राजा ने।
हँसते हँसते की तिलक हीन अरि की सब सुन्दर वनितायें।।44।।
था कुसुम शिरीष सदृश कोमल, थक देता था भूषण उतार।
फिर भी सक्षमता से अपनी धारे था, धरती राज्य भार।।45।।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈