॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 19 (46 – 50) ॥ ☆
सर्ग-19
किया पान था अग्निवर्ण ने सुरा का पाटल कुसुम आम्रपल्लव से मिश्रित।
अतः बसंत ऋतु बाद कृश काम उसका पुनः हो गया नया उन्नत श्री समुचित।।46।।
प्रजा कार्य से हो निरंतर विमुख वह इंद्रिय-सुखों से हुआ लीन कामी।
था उसका श्रृंगार ही ऋतु का परिचय, हर ऋतु का श्रृ्रंगार था उसका नामी।।47।।
व्यसनों में आसक्त रहने पै भी अग्निवर्ण पै न आक्रमण हुआ कोई कभी भी।
पर दक्ष-शापित हुये चंद्रमा सा, रतिराग वश क्षीण होता गया ही।।48।।
सुरापान औं रति के कारण था अस्वस्थ पर उसने छोड़ा न वैद्यों की मानी।
हो व्यसन के वश अगर इंद्रियाँ तो, उन्हें मोड़ सकता नहीं कोई ज्ञानी।।49।।
हो पीत मुख हो गया क्षीण इतना कि चल पाता था ले किसी का सहारा।
हुई मंद आवाज छूटे आभूषण हो राजयक्ष्मावश हुआ थका-हारा।।50।।
हुआ रोग से ग्रस्त वह किन्तु रघुकुल हुआ जैसे कांटा हुआ चन्द्रमा हो।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈