प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ “सावन के दोहे…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆
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सावन के इस माह में, अम्बर से बरसात।
मेघों से आने लगी, धरती को सौगात।।
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सावन के इस दौर में, हर्षाता है नीर।
जलस्रोतों की मिट गई, देखो सारी पीर।।
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सावन-भादों है झड़ी, जल का है अम्बार।
जगह-जगह पानी भरा, खुशियों का संसार।।
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सावन दिल को छू गया, बना आज मनमीत।
मौसम ने तो अब ‘शरद’, पाई दिल पर जीत।।
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सावन इक अहसास है, विरह-मिलन की बात।
मादक-सी अठखेलियाँ, जागे हैं जज़्बात।।
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सावन गाता गीत है, जागा है अनुराग।
हर पल हर्षाने लगा, गई शिथिलता भाग।।
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सावन इक अंदाज़ है, सावन मंगलगान।
हरियाली रचने लगी, जग का नया विधान।।
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बहुत खिला, रौनक भरा, सावन का संसार।
धरती को तो मिल गया, गौरव का आसार।।
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लोकगीत गुंजित हुए, प्रमुदित है अब धर्म।
दिल को छूने लग गए, त्योहारों के मर्म।।
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सावन है नव चेतना, सावन इक उत्साह।
सावन इक चिंतन नया, सावन है नव राह।।
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© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
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