प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ कविता – “सोलह आने सच…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆
पिता सदा भगवान हैं,माँ देवी का रूप।
मात-पिता से ही सदा,संतानों को धूप।।
–यह सोलह आने सच है।
संतति के प्रति कर्म कर,रचते नव परिवेश।
मात-पिता संतान प्रति,सहते अनगिन क्लेश।।
–यह सोलह आने सच है।
चाहत यह ऊँची उठे,उनकी हर संतान।
पिता त्याग का नाम है,माँ भावुकता का गान।।
-यह सोलह आने सच है।
निर्धन पितु भी चाहता,सुख पाए औलाद।
माता देती पौध को,हवा,नीर अरु खाद।।
-यह सोलह आने सच है।
माँ भूखा रह दुख सहे,तो भी नहिं है पीर।
कष्ट,व्यथा को सह रहा,पिता बना नित धीर।।
-यह सोलह आने सच है।
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© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
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