प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ कविता – “मित्रता के दोहे…” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆
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नेहिल होती मित्रता, होती सदा पवित्र।
दुख में कर ना छोड़ता, हो यदि सच्चा मित्र ।।
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वही मित्र है ख़ास जो, कह दे चोखी बात।
रहे संग वह नित मगर, बनकर के सौगात।।
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कृष्ण-सुदामा से सखा, नहीं मिलेंगे और।
ऐसा ही चलता रहे, सख्य भाव का दौर।।
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पावनता का तेज हो, निश्छल हों सम्बंध।
बनें सखा मजबूत कर, अनुपम यह संबंध।।
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अंतर्मन था निष्कलुष, गहन चेतना भाव।
अमर बने तब मैत्री, होगा नहीं अभाव।।
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कृष्ण-सुदामा मैत्री, ने पाया सम्मान।
पनपे ना कोई कपट, केवल मंगलगान।।
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एक देव था, एक नर, पर थे चोखे यार।
सख्य भाव देता सदा, हर युग में उजियार।।
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ऊँचनीच को भूलकर, बनना चोखे यार।
तब ही यह रिश्ता बने, आजीवन उपहार।।
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मित्र करे ग़ल्ती अगर, बतला देना भूल।
पर तजकर के साथ तुम, नहीं चुभाना शूल।।
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रखना हित का भाव नित, रखना उर में प्रीत।
जय होगी तब मित्रता, जय हो ऐसी रीत।।
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© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
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