श्री विष्णु प्रकाश श्रीवास्तव

(स्वपरिचय – बचपन से कविता, कहानियों में रुचि। मुंशी प्रेमचंद जी की लगभग सभी उपन्यास एवं कहानियाँ युवावस्था में ही पढ़ी। किसी विषय पर तुरंत कविता बनाने (तुकबंदी) की आदत।)

☆ कविता ☆ रिश्ते ☆ श्री विष्णु प्रकाश श्रीवास्तव ☆

इस दुनिया में रिश्तों का कोई नहीं मोल है।

माँ बाप के लिए उनके बेटे-बेटी अनमोल है ॥

 

माँ बाप अपना सर्वस्व देते बच्चे भूल जाते हैं।

भूखे पेट रहकर भी बच्चों को पालते खिलाते हैं ॥

 

बच्चे अपने लिए माँ बाप से उम्मीद करते हैं ।

पर माँ बाप के उम्मीदों पर पानी फेर जाते हैं॥

 

बुढ़ापे में अपने बच्चों के लिए बोझ बन जाते हैं।

अंतिम समय में बच्चों के लिए शूल बन जाते हैं ॥

 

वाह री दुनिया का चलन अपने पराये बन जाते हैं।

अपने बच्चों द्वारा उनके माँ बाप सताये जाते हैं॥

© श्री विष्णु प्रकाश श्रीवास्तव 

पुणे 

मो +91 94151 90491

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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