प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ – गीत – राम अवध हैं लौटते – ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
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वायु सुगंधित हो गई, झूमे आज बहार।
राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।
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सरयू तो हर्षा रही, हिमगिरि है खुश आज।
मंगलमय मौसम हुआ, धरा कर रही नाज़।।
सबके मन नर्तन करें, बहुत सुहाना पर्व।
भक्त कर रहे आज सब, इस युग पर तो गर्व।।
सकल विश्व को मिल गया, एक नवल उपहार।
राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।
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जीवन में आनंद अब, दूर हुई सब पीर।
नहीं व्यग्र अंत:करण, नहीं नैन में नीर।।
सुमन खिले हर ओर अब, नया हुआ परिवेश।
दूर हुआ अभिशाप अब, परे हटा सब क्लेश।।
आज धर्म की जीत है, पापी की तो हार।
राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।
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आज हुआ अनुकूल सब, अधरों पर है गान।
आज अवध में पल रही, राघव की फिर आन।।
आतिशबाज़ी सब करो, वारो मंगलदीप।
आएगी संपन्नता, चलकर आज समीप।।
बाल-वृद्ध उल्लास में, उत्साहित नर-नार।।
राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।
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जीवन अब अनुरागमय, सधे सभी सुर आज।
प्रभु राघव का हो गया, हर दिल पर तो राज।।
भक्तों ने हनुमान बन, किया राम का काज।
दुष्टों पर आवेग में, गिरी आज तो गाज।।
साँच और शुभ रीति से, चहके हैं घर-द्वार।।
राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।
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तुलसी बाबा खुश हुए, त्रेता का यह दौर।
सारे सब कुछ भूलकर, करें राम पर गौर।।
दौड़ रहे साकेत को, बोल रहे जय राम।
प्रभुदर्शन में बस गया, दिव्य ललित आयाम।।
आओ राघव! आपका, बार-बार सत्कार।
राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।।
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© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
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